है कहाँ छप्पर 'रघु' की झोपडी का?
है कहाँ भगवान्? कितनी आंधिया है...
नाव को तट पर बंधी रहने दो माझी,
उठ रहा तूफ़ान कितनी आंधिया है...
वो शक्कर और तेल की कतार में खड़ा है,
घर में है मेहमान... कितनी आंधिया है...
भूख से जो मर गया उसकी चिता से
जल रहा शमशान, कितनी आंधिया है...
© स्व. प्रफुल्ल चतुर्वेदी
© स्व. प्रफुल्ल चतुर्वेदी
कितनी आंधिया है..... and every word is true and painfully expressed! Loved every word of it!!!
ReplyDeleteThanks for appreciating Mausi. And yes, papa wrote that way. everything was inspired from a real situation. Nothing he wrote is fictional.
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